एक समय की बात है एक छोटे से गाँव में एक चोर रहता था जिसका नाम रमेश था। वह बहुत ही चतुर और चालाक था और गाँव में कई बार चोरियां कर चुका था। गाँव के लोग उससे बहुत परेशान थे और सोचते थे कि उसे सबक सिखाना चाहिए। एक दिन गाँव के सरपंच ने एक योजना बनाई। उन्होंने गाँव के सभी लोगों को इकट्ठा किया और रमेश को पकड़ने की तरकीब सोची। उन्होंने गाँव के मंदिर में एक कीमती मूर्ति रखी और उसकी सुरक्षा के लिए एक पहरेदार नियुक्त कर दिया। लेकिन यह पहरेदार एक चालबाज था जो रमेश को फंसाने के लिए तैयार था। रात को जब सब लोग सो रहे थे रमेश चोरी करने के लिए मंदिर पहुंचा। उसने धीरे-धीरे मंदिर का दरवाजा खोला और अंदर घुसा। जैसे ही उसने मूर्ति को उठाया पहरेदार ने उसे पकड़ लिया और जोर-जोर से शोर मचाया। गाँव के सभी लोग जाग गए और मंदिर की ओर दौड़े। रमेश ने भागने की कोशिश की लेकिन गाँव वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। उन्होंने उसे सरपंच के सामने पेश किया। सरपंच ने रमेश से पूछा “तुम्हें इतनी बार चेतावनी दी फिर भी तुम चोरी करना नहीं छोड़े। अब तुम्हें इस चोरी का अंजाम भुगतना पड़ेगा।” गाँव के लोगों ने मिलकर रमेश को एक सबक सिखाने का फैसला किया। उन्होंने उसे गाँव के लोगों के सामने सार्वजनिक माफी मांगने के लिए कहा और भविष्य में कभी भी चोरी न करने का वचन दिलाया। रमेश ने अपनी गलती मानी और माफी मांगी। गाँव के लोगों ने उसे माफ कर दिया लेकिन उसे एक महीना तक सामाजिक कार्य करने की सजा दी।
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