किसान बना खलनायक : रामू एक मेहनती किसान था। बरसों से अपने खेतों में पसीना बहा रहा था। गाँव में उसकी इज़्ज़त थी लोग उसे रामू भैया कहकर बुलाते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से बारिश कम हो रही थी कर्ज़ बढ़ रहा था और फसलें बर्बाद हो रही थीं
संघर्ष की शुरुआत
रामू ने कई बार सरकार से मदद मांगी बैंकों से ऋण लिया लेकिन हर बार सिर्फ़ वादे मिले पैसे नहीं। साहूकारों से लिए कर्ज़ ने उसे तोड़ दिया। एक दिन जब उसके छोटे बेटे ने दूध के लिए रोते हुए कहा बाबा भूख लगी है तो रामू का दिल अंदर से हिल गया।
परिवर्तन
रामू ने ठान लिया कि अब वह किसी से नहीं हारेगा। उसने अपना खेत बेच दिया और शहर चला गया। वहाँ उसने एक बड़े बिल्डर से हाथ मिला लिया। वह अब गाँव की ज़मीन खरीदवाने लगा लालच डर और धोखे से। जिन किसानों को कभी उसने इंसाफ दिलाने के लिए आवाज़ उठाई थी अब उन्हीं से ज़मीनें हड़पने लगा।
अब रामू कौन था?
वही रामू जो कभी किसान कहलाता था अब गाँव वालों की नज़रों में एक खलनायक बन चुका था। वो कहावत याद आ गई जो आँधियों से लड़े थे अब वो ही तूफ़ान बन गए हैं।
अंत
रामू की आँखें तब खुलीं जब उसके ही बेटे ने उसे सवालों की नज़र से देखा बाबा क्या हम भी किसी का घर उजाड़ कर बड़े हुए हैं
रामू की आंखों में आँसू आ गए… पर अब बहुत देर हो चुकी थी