चंचल गिलहरी दौड़ती आई,
पेड़ की डाल पर कूद लगाई।
छोटी-सी है, फुर्ती से भरी,
लगती जैसे बिजली की लड़ी।
कभी यहाँ, कभी वहाँ,
भागती है वो बेपरवाह।
नन्ही-सी पूंछ, आँखें चमकती,
मस्ती में हर दिन है जीती।
कभी दाने चुनती मिट्टी में,
कभी छुपती है लकड़ी में।
कभी दोस्तों संग खेल रचाती,
कभी अकेली ही गीत गाती।
चंचल गिलहरी प्यारी बहुत,
उसकी हरकतें हैं खूब सरल।
बच्चे उसको देख मुस्काएं,
उसकी मस्ती से सब लुभाएं।
यह कविता गिलहरी की चंचलता और उसकी खेल-कूद की आदतों को दर्शाती है, जो बच्चों के लिए आकर्षक और मनोरंजक है।