एक छोटे से गांव में एक गरीब किसान रहता था। वह हर दिन कड़ी मेहनत करता और अपने परिवार के लिए भोजन जुटाने की कोशिश करता। उसके पास एक छोटा सा खेत था, जिसमें वह अनाज उगाता था। हालांकि, उसके खेत से बहुत अधिक फसल नहीं होती थी, लेकिन वह हमेशा संतुष्ट रहता था और कभी शिकायत नहीं करता था।
एक दिन, उस गांव में एक धनी व्यापारी आया। उसने किसान से पूछा, “तुम हमेशा खुश और संतुष्ट कैसे रहते हो? तुम्हारे पास तो बहुत कम है, फिर भी तुम इतने प्रसन्न रहते हो।”
किसान ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “सच्ची खुशी संपत्ति या धन में नहीं होती। मेरे पास जो कुछ भी है, मैं उसमें संतुष्ट हूँ। मैं मेहनत करता हूँ और अपनी ज़रूरतें पूरी करता हूँ। मेरी पत्नी और बच्चे मेरे साथ हैं, और यही मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है।”
व्यापारी ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “तुम्हारी बातों में सच्चाई है। मैं भी दौलत के पीछे भागता रहा, लेकिन कभी सच्ची खुशी नहीं मिली। अब मुझे समझ में आया कि खुशी पाने के लिए जरूरी है कि हम जो कुछ भी हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहें।”
उस दिन के बाद से, व्यापारी ने अपने जीवन में संतुष्टि और सरलता को अपनाया और वह भी खुश रहने लगा।
सीख: सच्ची खुशी बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे अंदर होती है। जो कुछ भी हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहना ही सच्ची खुशी का मार्ग है।