काला कबूतर की गुंडई

काला कबूतर की गुंडई

Black pigeon hooliganism


काला कबूतर की गुंडई : एक बड़े से शहर के बीचोंबीच एक पुरानी इमारत थी, जहाँ दर्जनों कबूतर रहते थे। सब कबूतर आपस में मिलजुल कर रहते, लेकिन उनमें से एक था काला कबूतर, जो सबसे अलग था।

काला कबूतर दिखने में जितना हट्टा-कट्टा था, उतना ही अकड़ू भी था। वो हमेशा सबसे पहले दाना चुगता, पानी पीता और सबसे मोटे तगड़े कबूतरों को अपना चमचा बना लिया था। अगर कोई छोटा या दुबला कबूतर पहले खाने पहुँचता, तो काला कबूतर फड़फड़ाते पंखों से उसे भगा देता।

“ये जगह मेरी है! जो मैं कहूँ वही होगा!” वो गरजता।

बाकी कबूतर उससे डरते थे, पर मन ही मन सबको बहुत गुस्सा आता था।

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एक दिन, सफेद कबूतरों के एक नए झुंड ने उस इमारत के पास डेरा डाला। उनके नेता चीकू कबूतर ने सबको कहा, “हम एकजुट रहेंगे। डरेंगे नहीं।

जब काला कबूतर ने उन्हें भी डराना चाहा, चीकू ने मुस्कुराते हुए कहा, “ताकत अकेले की नहीं होती, एकता की होती है।” फिर क्या था — सारे कबूतर मिलकर सामने आ गए! कोई उसकी पूंछ खींचता, कोई उसके पंख नोचता, और काला कबूतर खुद डर के मारे छत के कोने में दुबक गया।

उस दिन के बाद काला कबूतर की गुंडई खत्म हो गई। अब वो भी बाकी कबूतरों के साथ लाइन में लगकर दाना चुगता और सबसे विनम्रता से पेश आता।

और सब कबूतरों ने सीख ली कि “डर के नहीं, प्यार और एकता के साथ जीना चाहिए!”


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